International conference on the Glory of Sanskrit and Sanskriti

Jointly organised by the BAPS Swaminarayan Research Institute, Akshardham, Delhi and Swastivachanam

  • अक्षरधाम मंदिर के पवित्र प्रांगण में बीएपीएस स्वामिनारायण रिसर्च इंस्टीट्यूट और स्वस्तिवाचनम के तत्त्वाधान में आयोजित “संस्कृत और संस्कृति के गौरव” विषय पर अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न।
  • विश्व के मूर्धन्य विद्वानों ने किया “संस्कृत और संस्कृति के वैभव” पर विचार विमर्श
  • “संस्कृत और संस्कृति” की महिमा गाते देश-विदेश के वरिष्ठ वक्ता
  • अक्षरधाम दिल्ली में प्रमुखस्वामी महाराज के शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद

स्वामिनारायण अक्षरधाम, नई दिल्ली के पवित्र प्रांगण में स्थित प्रमुखस्वामी सभागृह में दिनांक 14-4-2022 को एक विशेष अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया।” संस्कृत और संस्कृति की गरिमा” ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय पर आयोजित यह संगोष्ठी बीएपीएस एवं स्वस्तिवाचन के संयुक्त प्रयासों का ऐतिहासिक प्रतिफल थी। जहाँ एक और बीएपीएस भारतीय संस्कृति की उज्जवल गरिमा का प्रतीक है वहीं दूसरी और स्वस्तिवाचनम संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में अग्रणी है। दोनों ही संस्थाओं के संयुक्त उपक्रम में आयोजित इस परिषद में स्पेन, क्रोएशिया, पोलेंड, इंगलेंड, ऑस्ट्रिया एवं भारत के गणमान्य अतिथि एवं प्रबुद्ध विचारक उपस्थित रहे।

प. पू. प्रमुखस्वामी महाराज के शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद के कार्यक्रम को दो सत्रों में विभाजित किया गया था। कार्यक्रम के पूर्व में माननीय आमंत्रितगणों की पंजीकरण प्रक्रिया के उपरांत सत्रारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। तदुपरांत मंच पर विराजित विशिष्ट वक्ताओं का परिचय और स्वागत किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में रिपब्लिक ऑफ त्रिनिदाद एंड टोबागो के भारत में हाई कमिश्नर श्री डॉक्टर रोजर गोपोल थे।

संस्कृत भाषा को श्रेष्ठतम सम्मान देने हेतु डॉक्टर सुनील जोशी (महासचिव स्वस्तिवाचनम) ने संगोष्ठी के हेतु एवं भूमिका को संस्कृत भाषा में प्रस्तुत किया। इस सत्र के मुख्य व्याख्यान-विषय और वक्ता थे-संस्कृत और भारतीय नवजागरण – (प्रोफेसर ऑस्कर पूजोल, निदेशक, इंस्टिट्यूट सर्वेंटस), दार्शनिक शास्त्र हेतु आत्मसंयम की आवश्यकता – ( प्रोफेसर बालगणपति देवरकोंडा, नई दिल्ली, दर्शनशास्त्र विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय), संस्कृत के प्रसार में सिनेमा की प्रासंगिकता- (श्री रविशंकर, बेंगलुरु, निदेशक, पुण्यकोटी संस्कृत फिल्म निर्देशक), संस्कृत भाषा की प्राचीनता – (श्री महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानेश्वरपूरी (क्रोएशिया) वाइस प्रेसिडेंट विश्व गुरुदीप आश्रम रिसर्च सेंटर), आधुनिक युग में संस्कृत शास्त्रों की प्रासंगिकता – (डॉक्टर रोजर, हाई कमिशन ऑफ़ रिपब्लिक ऑफ त्रिनिदाद एंड टोबागो टू इंडिया)।

सत्रांत में महामहोपाध्याय पूज्य भद्रेशस्वामी जी (प्रभारी, बीएपीएस अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली) ने बताया कि “प्रमुखस्वामी महाराज ने संस्कृत एवं संस्कृति के उत्थान के लिए आजीवन प्रयास किए थे। छोटे गाँवों से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक स्वामीश्री ने भारतीय संस्कृति की गरिमा को बढ़ाया था।“ स्वामीजी ने संस्कृत भाषा की विशेषता पर भी अनेक मननीय तर्क प्रस्तुत किए। अंत में स्वस्तिवाचन के उपाध्यक्ष युवराज भट्टराय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इसके अतिरिक्त द्वितीय सत्र में डॉक्टर लुसी एच.के.एच.( लंदन), योगानंद शास्त्रीजी, प्रो. शशिबाला, डॉ. पुनीता शर्मा, सिनेमा में संस्कृत भाषा के योगदाता विजय कृष्णानंद तथा सुश्री सोना वुजोविक (ऑस्ट्रिया) इस संगोष्ठी के प्रमुख वक्ता रहे। डॉक्टर ज्योतिंद्र दवे (निर्देशक बीएपीएस स्वामिनारायण अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली) ने भारतीय संस्कृति के तत्त्वों की परिचर्चा की। स्वस्तिवाचन के उपाध्यक्ष श्री युवराज ने अतिथियों के लिए धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। सस्नेह तथा आदर सहित उन्होंने आयोजकों और प्रतिभागियों की भागीदारी पर प्रसन्नता व्यक्त की।

सभी महानुभावों ने संस्कृत और संस्कृति को अपने-अपने तथ्यों और तर्कों सहित विश्लेषित करके महिमा मंडित किया। सभा के अंत में सभी वरिष्ठ वक्ताओं तथा सम्मानित अधिकारियों ने इस भाषा के उज्जवल भविष्य के लिए अपने प्रयास जारी रखने का संकल्प किया। एक समूह चित्र खिंचवाने के पश्चात् सभी अतिथियों ने स्वामिनारायण अक्षरधाम की प्रमुख झाँकियाँ, प्रदर्शनी, संस्कृति नौकाविहार और जलपरदे योजित वीडियो प्रदर्शन का आनंद उठाया।

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