Abstract
प्रकट ब्रह्मस्वरूप महंत स्वामी महाराज द्वारा लिखित सत्संगदीक्षा ग्रंथ अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन का एक अद्वितीय शास्त्र है। भगवान स्वामिनारायण ने ‘वचनामृत’ ग्रंथ में अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन के जो सिद्धांत प्रबोधित किए हैं उन्हीं सिद्धांतों का संक्षिप्त तथापि सम्यक् दर्शन ‘सत्संगदीक्षा’ शास्त्र में होता है। अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन में जीव, ईश्वर, माया, अक्षरब्रह्म और परब्रह्म इन पाँच नित्य तत्त्वों का स्वीकार किया गया है। जिनमें माया के अतिरिक्त सभी तत्त्व चेतन हैं। उनमें भी जीव और ईश्वर अनेक हैं और अनादि काल से मायाबद्ध हैं। अक्षरब्रह्म और परब्रह्म माया से पर हैं और दोनों एकसंख्यक हैं; जिनमें परब्रह्म अक्षरब्रह्म से भी पर है। इनके अतिरिक्त परब्रह्म का सर्वकर्तृत्व, सर्वोपरित्व, साकारत्व इत्यादि सारे सिद्धांत जो सत्संगदीक्षा शास्त्र में निरूपित हैं वे भगवान स्वामिनारायण की परावाणी स्वरूप वचनामृत ग्रंथ में भी दृश्यमान होते हैं। अतः दोनों शास्त्रों में एक समरसता का दर्शन होता है।