सत्संगदीक्षापर्यालोचनम्

सत्संगदीक्षा ग्रंथ की विशेषता गागर में सागर की तरह सत्संग दीक्षा ग्रंथ जीवन जीने के लिए एक उत्कृष्ट मार्गदर्शक है। यहाँ हम जीवन के उत्थान के विभिन्न दृष्टिकोण पाते हैं।

महंतस्वामी महाराज ने संपूर्ण विश्व और प्रत्येक व्यक्ति को परम शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए संजीवनीरूप सत्संगदीक्षा शास्त्र दिया। ३१५ श्लोकों में लिखे गए इस सत्संग दीक्षा ग्रंथ में ११०० से अधिक विषय हैं। वर्ष २०२० में महंतस्वामी महाराज द्वारा लिखित, इस ग्रंथ ने बहुत कम समय में पूरे विश्व में अपना प्रभाव फैलाया है। आज दुनिया भर में लाखों साधक इस शास्त्र को पढ़ते हैं और चिंतन करते हैं। हजारों बाल, युवा और वरिष्ठ जिज्ञासुओं ने इस ग्रंथ को कंठस्थ किया। इस शास्त्र के यज्ञ, तुला और सेमिनार हुए आज २०,००० से अधिक लोग इस पुस्तक का ऑनलाइन अध्ययन कर रहे हैं। इस शास्त्र मूलरूप से महंतस्वामी महाराजने गुजराती में लिखा, उसी समय में महामहोपाध्याय स्वामी भद्रेशदास ने स्वामीजी की आज्ञासे संस्कृत श्लोकबद्ध किया। और स्वल्प समय में हिंदी, अंग्रेजी, स्वाहिली, तेलुगु, उड़िया, कन्नड़, फ्रेंच, जर्मन, इटालीयन, पुर्तगाली, स्पेनिश, रूसी, पोलिश, बंगाली, कनाडाई, ब्रेइल में अनुवाद हुआ यदि इस ग्रंथ का गहराई से अध्ययन किया जाए तो इसमें छिपे विशिष्ट सिद्धांत का दर्शन बहत लोकप्रिय हो सकता है इसी आशा के साथ ‘आर्ष शोध संस्थान’ गांधीनगर द्वारा ‘सत्संग दीक्षा शास्त्र में जीवन उन्नति के विविध दृष्टिकोण’ विषय पर पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ४ से ५ अक्टूबर, २०२१ तक BAPS स्वामिनारायण संस्कृत महाविद्यालय सारंगपुर में आयोजित की गई।

संगोष्ठी की विशेषता

दो नदियों के संगम को प्रयाग कहा जाता है,जैसे कि रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, देवप्रयाग आदि लेकिन जब तीन नदियाँ मिलती हैं तो उसे प्रयागराज कहा जाता है। इसी प्रकार सारंगपुर में धोली, उतावली और फल्गु इन तीन नदी के भौगोलिक त्रिवेणी संगम में अध्यात्म प्रयागराज मनाया गया वह था नैमिषारण्य सम स्थान, प्रकट ब्रह्मस्वरूप महंतस्वामी महाराज का योग और एक रुचिवाले विद्वानों का सम्मेलन

संगोष्ठी विवरण

यदि इस ग्रंथ का गहराई से अध्ययन किया जाए तो इसमें छिपे मौक्तिक समान सिद्धांतों का दर्शन बहुत सुलभ हो सकता है। इसी आशा के साथ सत्संग दीक्षा शास्त्र में जीवन उन्नति के विविध दृष्टिकोण’ विषय रक्खा गया।

पंच दिवसीय इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में University of Toronto, University of Leeds, University of Cambridge, King’s College London, Harvard University, University of Chicago, University of California, University of Cape Town, South Africa, सरदार पटेल युनिवर्सिटी विद्यानगर, गुजरात टेक्नीकल युनिवर्सिटी गांधीनगर, गुजरात युनिवर्सिटी अमदावाद, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय बड़ौदा, श्रीसोमनाथ संस्कृत युनिवर्सिटी आदि के विद्वानों ने अध्यक्षरूप में एवं शोधपत्र पाठक के रूप में भाग लिया।

इस संगोष्ठी में तत्त्वचर्चा, प्रमाणमीमांसा, साधना, मुक्ति, परमात्मा की प्रत्यक्षता, गुरु की प्रसन्नता का विचार, प्राप्ति का विचार, नित्य वैचारिक साधना, गुरुचरित्र के साथ तुलना, स्वयं का विचार, बाल-युवा संस्कार निर्माण, ग्रंथ के अनुवाद की विशेषता, शास्त्रपठनविचार, ग्रंथ की शास्त्रीयता वगैरह शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। शोध पत्र पढ़ने वाले में कई छात्र थे, कई प्राध्यापक थे, तो कई साधना मार्गी विद्वान साधु थे। इस प्रकार यह सेमिनार एक साधना यज्ञ बना रहा।

इस संगोष्ठि का एक विशिष्य पहलू था कि सत्राध्यक्ष के रूप में विविध विद्वानों की उपस्थिति रही। ईन विद्वानों को भी सत्संग दीक्षा के ग्रंथ को पढकर, सारंगपुर के दिव्य वातावरण का अनुभव कर विशिष्य अनुभूति हुइ। यहां में दो विद्वाने की अनुभूति पेश करता हूँ। महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (वडोदरा) के संस्कृत पाली और प्राकृत भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष रवींद्र पंडाजी ने कहा कि “मै महंतस्वामी महाराज को देख रहा था भक्तिपूर्वकऔर मेरे अंदर मैरी सब मानसिक क्रियाएँ स्तब्ध हो गई, सब मानसिक द्वन्द्व बंद हो गए थे। और मैंने आज जीवन में पहली बार शांति की अनुभूति की। मैं बता नहीं सकता शब्दो में, अनुभूति ही प्रमाण है। आज मुझे दिव्य अनुभूति भव्य अनुभूति हुई। मैं फक्त देखता रहता था। कोई विचार ही नहीं था और जैसे शारीरिक तथा मानसिक संतुलन, हार्मोनि(Harmony) कहो या स्थिरता कहो एक प्रकार का निर्वेद था कोई वेदना ही नहीं थी। इन्द्रिय, मन, बुद्धि और मन शांत हो गया सिर्फचेतना ही चलती थी। ईस अनुभूति को मैं सोचुंगा ‘परमा-शांति” सरदार पटेल विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग के अध्यक्ष डॉ. निरंजनभाई पटेल ने सत्संग दीक्षा ग्रंथ का विभिन्न दृष्टिकोणों से यशोगान किया। उन्होंने कहा, “सत्संगदीक्षा लोक कल्याण की भूमिका से निर्मित है। आधुनिक स्मृति है। यह शास्त्र है जो आदर्श नागरिक बनाता है। आधुनिक मानव धर्मशास्त्र है। यह वह शास्त्र है जो भारतीयता सिखाता है। तन मन और धन की पवित्रता का ज्ञानवर्धक है। मुक्ति का अनुभव करवाता है। उपनिषदों के व्यावहारिक पक्ष परप्रकाश डालता है। सत्यं शिवं एवं जीवन को सुंदर बनाता है। यह नैतिक दार्शनिक ग्रंथ है। ” इस सेमिनार में ४८ शोधपत्र पेश हुए थे। इन शोधपत्रों में से निश्चित समय मर्यादा में प्राप्त हुए शोध पत्रों का यह ग्रंथ आपके समक्ष पेश करता हूँ। सत्संगदीक्षा पर शास्त्र पर ऐसा चिंतन विशिष्ट ग्रंथ इस विश्व में प्रथम है। महंत स्वामी महाराज ने पंच दिवसीय सेमिनार के समापन के आशीर्वाद में कहा था कि “बहुत से रत्न इस ग्रंथ में से मिलेंगे विश्व में इस ग्रंथ का सविशेष प्रचार और ग्रंथ के नीति नियमरूप आचार प्रसिद्ध होगा। ” महंत स्वामी महाराज का यह आशीर्वाद अवश्य सफल होगा।

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